भाऊराव महन्त

तृप्ति बोलो

कोशिशें की सर्वदा तुमसे मिलन की लाख लेकिन- दूर ही मुझसे रही क्यों? खिन्न होकर, तृप्ति बोलो! तुम रहा करती हो पुष्पित पुष…

ग़ज़ल

मैं का झंडा गाड़ लोग सब चले गए। तन का कपड़ा फाड़ लोग सब चले गए। फल लगते हैं दूर, नहीं छाया मिलती, वृक्ष लगाकर ताड़ ल…

ग़ज़ल

छोटे लोग गिने जाते कंकर की श्रेणी में। और बड़े आ जाते हैं पत्थर की श्रेणी में।   पल भर में ही कई दिलों का क़…

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