
भाऊराव महन्त
केवल तृष्णाएँ हैं
सीमाओं के पार हमारी सीमाएँ हैं। इस बन्धन को तोड़ा उस बन्धन की ख़ातिर औरों की पूजा में छोड़ा अपना मंदिर …
सीमाओं के पार हमारी सीमाएँ हैं। इस बन्धन को तोड़ा उस बन्धन की ख़ातिर औरों की पूजा में छोड़ा अपना मंदिर …
कोशिशें की सर्वदा तुमसे मिलन की लाख लेकिन- दूर ही मुझसे रही क्यों? खिन्न होकर, तृप्ति बोलो! तुम रहा करती हो पुष्पित पुष…
मैं का झंडा गाड़ लोग सब चले गए। तन का कपड़ा फाड़ लोग सब चले गए। फल लगते हैं दूर, नहीं छाया मिलती, वृक्ष लगाकर ताड़ ल…
छोटे लोग गिने जाते कंकर की श्रेणी में। और बड़े आ जाते हैं पत्थर की श्रेणी में। पल भर में ही कई दिलों का क़…