राजीव रंजन 'पहाड़ी'
 मिट्टी की कोख

मिट्टी की कोख

बंधों न किसी भ्रम के फंदे से न जड़ हो जाओ किसी ठौर गुजरने दो जिंदगी को सहज अच्छे-बुरे और कठिन दौर से कि बंधनों का, बंद…

चाहत के निशां

चाहत के निशां

स्याह हुआ खून क्यों कर जला होगा कोई अरमां मौत आती नहीं अक्सर कि थाम ले उसका ही दामां कौन आया है मैय्यत में बुझा कर उम्म…

रोक लो

रोक लो

तुम्हारा जाना यूं हुआ कि आंखों के आंसू तुम्हें विदाई देने को पलकों में ही ठिठक गए और आंखें पीतीं रहीं वेदना मगर जब तुम …

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