विनय बंसल
हिन्दी का लहराता परचम
वर्ण समेटे ख़ुद में वावन , जन-मन का उद्गार है हिंदी। कहलाती संस्कृत की दुहिता , शब्दों का भंडार है हिंदी। …
वर्ण समेटे ख़ुद में वावन , जन-मन का उद्गार है हिंदी। कहलाती संस्कृत की दुहिता , शब्दों का भंडार है हिंदी। …
करोगे मेहनत, फिर देखोगे, सपने होंगे सारे पूरे। जल्दी पूरे हो जाएंगे, जो भी रह गए काम अधूरे। आलस को तुम अपने ऊपर, कभी…
पति की खातिर जल्दी उठकर, सुबह सवेरे चाय बनाती। लगी रहे घर के कामों में, घर की हर उलझन सुलझाती। चौका कपड़े झाड़ू पोंछ…
चाह मेरी है नए वर्ष में, कुछ ऐसा हो जाए। बेकारी हो दूर, सभी को रोजगार मिल जाए। कोई माँगे नहीं राह में, …
कपड़े वहां टंगेगे कैसे, न कीलें हैं न खूँटा है। हमने पानी उसमें रख्खा, घड़ा जो सबसे कम फूटा है। …