
काव्य-सरिता
जाने कैसी हवा चली
जाने कैसी हवा चली , कैसी चली ये रीत रे। ना तो मनके तार खनकते , ना होठों पर गीत रे। भाग-दौड़ के इस जीवन में , हर …
जाने कैसी हवा चली , कैसी चली ये रीत रे। ना तो मनके तार खनकते , ना होठों पर गीत रे। भाग-दौड़ के इस जीवन में , हर …