ग़ज़लनामा
ग़ज़ल
झूठ का जयघोष नित होता रहा , कुंभ करणी नींद सच सोता रहा। सेठ जी के सब दरीचे बन्द थे , भूख से दर पर कोई रोता …
झूठ का जयघोष नित होता रहा , कुंभ करणी नींद सच सोता रहा। सेठ जी के सब दरीचे बन्द थे , भूख से दर पर कोई रोता …
मुझे क्यूँ चाँद का धोका हुआ है अभी तू छत पे क्या आया हुआ है डुबो दो पाँव आकर झील में तुम कि पानी शाम से ठहरा हुआ है…
धूप को फूल खल रहे होंगे, खेत के पाँव जल रहे होंगे | जाति औ फ़िरके वाले सांचे में, आज बच्चे भी ढल रहे होंगे | हो रही कोठ…