
व्यग्र पाण्डेय
पिता मेरे
हाथ पकड़ चलना सीखा हाथ पकड़ के लिखना संरक्षण मैं मैंने उनके सदा सीखा पढ़ना-बढ़ना पिता मेरे …
हाथ पकड़ चलना सीखा हाथ पकड़ के लिखना संरक्षण मैं मैंने उनके सदा सीखा पढ़ना-बढ़ना पिता मेरे …
कागज की जमीन में कलम के हल से बोया करता कवि किसान बनकर शब्दों के बीज भावों से सिंचित प्रस्फुटित होते अंकुर समय पाकर फि…
झूठ सदा से लगती आई तेज देखने में सुनने में संग बोलने में भी पर बन ना पाई सच आज तक वो सच चमक-दमक से दूर सहजता के पास होत…
सच मैं रोया था उस दिन जब मैं रोपा गया शमशान के एक कोने में आवश्यकता जानकर मैं मरते मरते कई बार जिया हूँ …
यादें बचपन की होती अमूल्य निधि जीवन की माँ के अंक के आगे सभी गणितीय अंक फीके अंगुली पकड़ के चले तुतलाकर …