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ग़ज़ल

अक्तूबर 05, 2023
  हमने माना कि है मुख़्तसर ज़िंदगी, नफ़रतों में न हो पर बसर ज़िन्दगी। क़द्र इसकी करो ये है आब-ए-हयात, बन न जाए कहीं ये ज़हर ज़िंदगी। ग़र हैं कांट...

अरुणिता के फ्लिपबुक संस्करण

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