ग़ज़ल

अरुणिता
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छोटे लोग गिने जाते कंकर की श्रेणी में।

और बड़े आ जाते हैं पत्थर की श्रेणी में।

 

पल भर में ही कई दिलों का क़त्ल किया करती,

जिह्वा अपनी आती है खंजर की श्रेणी में।

 

अब तक मालिक बनकर ऐंठे थे जो बाबूजी,

वृद्ध हुए तो आ बैठे नौकर की श्रेणी में।

 

रोज़ हलाहल आम आदमी दुख का पीता है,

क्यों न रखें हम उसको तब शंकर की श्रेणी में।

 

फैशन का ये दौर भयानक त्रासदियाँ लाकर

आज खड़ा कर दिया हमें जोकर की श्रेणी में।

 

तुंग हिमालय इतना भी इतराओ मत खुद पर

दो पल लगता है, जाने सागर की श्रेणी में।

 

पति-पत्नी के रिश्ते ऐसे बदले आज 'महंत

अब दोनों आते मिसेज-मिस्टर की श्रेणी में।

भाऊराव महंत

बालाघाट, मध्यप्रदेश

 

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