काव्य-सरिता
विश्वविद्यालय परिसर के दिन

विश्वविद्यालय परिसर के दिन

कितने खूबसूरत हैं विश्वविद्यालय परिसर के दिन , हर सुबह परिसर में जाने का उत्साह कभी न होता कम , रोज सुबह सबसे मिलना न…

तुम सावन के गीतों जैसे

तुम सावन के गीतों जैसे

तुम सावन के गीतों जैसे धीमी धीमी फुहारों जैसे भीगे भीगे मेरे मन में छा जाते हो तन में कैसे। तुम्हें छिपाकर सबसे …

तुम अजेय हो

तुम अजेय हो

सुनो! स्वयं के विश्वासों पर , ही जगती में टिक पाओगे।   गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है , यही अन्यथा मिट जाओगे।।   साह…

गुमनाम शहीद

गुमनाम शहीद

कैसी मुश्किल घड़ी आन पड़ी है ! संकट में उसकी जान पड़ी है । इक माँ है जो सरहद पर बुला रही हैं । इक माँ है जो अस्पता…

हिन्दी का लहराता परचम

हिन्दी का लहराता परचम

वर्ण समेटे ख़ुद में वावन ,  जन-मन का उद्गार है हिंदी। कहलाती संस्कृत की दुहिता , शब्दों का भंडार है हिंदी।   …

वह अभागा

वह अभागा

एक लंबा सा बांस अपनी ऊंचाई से डेढ़ गुना हाथ में पकड़े रोज गुजरता है घर के सामने से नहीं जानता कौन है वह   …

रिक्तता

रिक्तता

चिड़ियों के कलरव से पहले , नयन सदा खुल जाते थे। भोर सूर्य के दर्शन पा कर , तन मन शक्ति जगाते थे।।   पुष्पों क…

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