ग़ज़ल

अरुणिता
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मुझे क्यूँ चाँद का धोका हुआ है 

अभी तू छत पे क्या आया हुआ है 


डुबो दो पाँव आकर झील में तुम

कि पानी शाम से ठहरा हुआ है 


किसी बच्चे के हाथों में थमा दो 

खिलौना देर से मचला हुआ है 


मिलोगी तो करुँगा ख़ूब बातें 

बड़ी मुद्द्त से ये सोचा हुआ है 


लगाओ दाम मेरी रूह का भी 

अभी तो देह का सौदा हुआ है 


छिपी बैठी है बिल्ली कब से घर में 

मनुज ने रहगुज़र काटा हुआ है 


मुझे मालूम है फ़ितरत शहर की 

वहीं से "ग़ैर "तो लौटा हुआ है |


              अनुराग मिश्र ग़ैर

सहायक आबकारी आयुक्त
बजाज हिंदुस्तान शुगर लिमिटेड
गांगनौली, सहारनपुर


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