हाथ पकड़ चलना सीखा
हाथ पकड़ के लिखना
संरक्षण मैं मैंने
उनके
सदा सीखा पढ़ना-बढ़ना
पिता मेरे भगवान मेरे
आकाश मेरे प्रकाश मेरे
मूल्यवान सानिध्य मेरे
खुशी मेरी उल्लास मेरे
सेवा में अर्पित कर दूँ
मैं अपना जीवन सारा
बहती रहे सदा सदा ही
प्रेम की अविरल धारा
मान मेरे स्वाभिमान मेरे
अभिमान मेरे पिताजी
खुश रहें अगर सदा तो
राम भी मुझसे राजी
- व्यग्र
पाण्डे (कवि/लेखक)
कर्मचारी कालोनी,
गंगापुर सिटी,