किसी उलझी लट सी
धड़कन हृदय की
हो जाए जब अबूझ
और सिमट जाए कभी
एकांत निलय में मन
तब कहो क्या अधरों के कंपन में
अटक गए प्रेम के शब्द तुम पहचान
लोगी?
गर्म सांसों की चाल मद्धम
कभी उष्ण उच्छवास में
लोहार का सा घन
हृदय में रिसते शोणित के कण
नि:श्वासों में घिरा प्रण
शून्य का विस्तार प्रतिक्षण और
वेग अश्रु का रोके नयन तुम पहचान
लोगी?
हां, तो उस
दिन उगेगी अलि!
छांव प्यार की कुसुमलता बन।
राजीव रंजन सहाय,
देवघर, झारखंड।