चाहत के निशां

अरुणिता
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स्याह हुआ खून क्यों कर

जला होगा कोई अरमां


मौत आती नहीं अक्सर

कि थाम ले उसका ही दामां


कौन आया है मैय्यत में

बुझा कर उम्मीदों की शम्मा


दफ्न हो जाएगा जिस्म

रह जाएगा प्यार का नगमा


रोया है कोई रात भर शायद

रुकता नही अश्कों का कारवां


जागती रहती हैं यादें उम्र भर

ढोती है क़ब्र चाहत के निशां।


राजीव रंजन 'पहाड़ी'
खुफिया ब्यूरो से सेवा निवृत्त अधिकारी
गोड्डा, झारखण्ड 



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