सुनो! स्वयं के विश्वासों पर, ही जगती में टिक पाओगे।
गांँठ बाँध लो मूल मन्त्र है, यही अन्यथा मिट
जाओगे।।
साहस - शुचिता से भूषित तुम, धरती माँ के दिव्य
पुत्र हो।
घबराहट से परे शौर्य की, सन्तानों के तुम
सुपुत्र हो।।
तुम अतुल्य अनुपम अजेय हो, बुद्धि वीरता के
स्वामी हो।
स्वर्ण पिंजरों के बन्धन से, मोह मुक्ति के
पथगामी हो।।
चलते चलो रुको मत समझो, जीवटता का यह
जुड़ाव है।
संघर्षों में मिली विफलता, मूल सफलता का
पड़ाव है।।
करते हैं संघर्ष वही बस, पा पाते हैं मंजिल
पूरी।
भीरु और आलसी जीव की, रहती हर कामना
अधूरी।।
भरो आत्मविश्वास स्वयं में, स्वयं शक्ति अवतरण
करेगी।
बैशाखी पर टिके रहे तो, कुण्ठित आशा वरण
करेगी।।
घोर निराशा भरी कलह का, जीवन भी क्या जीवन
जीना ।
तज कर निर्मल नीर नदी का, गन्दी नाली का जल
पीना।।
इसीलिए विश्राम छोड़ कर, कर्म करो निर्भय हे
साथी।
विकट परिस्थिति में भी होगी, दुर्जय अजित विजय
हे साथी।
ध्यान रहे चौकस चौकन्ने, रहकर आगे बढ़ना
होगा।
खड़ी चढ़ाई है चट्टानी, अगम शिखर पर चढ़ाना
होगा।।
होगी कठिन परीक्षा बेशक, डग भरते होगी
कठिनाई।
किन्तु मात्र संकल्पों से ही, लेगी विपदा स्वयं
विदाई।।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया
"प्राण"
"वृत्तायन"
957, स्कीम नं. 51
इन्दौर पिन- 452006 म.प्र.
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