कैसी मुश्किल घड़ी आन पड़ी है !
संकट में उसकी जान पड़ी है ।
इक माँ है जो सरहद पर बुला रही हैं ।
इक माँ है जो अस्पताल में कराह रही हैं ।
इक माँ जिसकी सेवा करना उसका घर्म ।
इक माँ जिसकी रक्षा करना उसका कर्म ।
किसे छोड़ूँ किसे अपनाऊँ !
कौन सा फ़र्ज़ पहले निभाऊँ !
फ़ैसला करना नहीं था इतना आसान ।
रख कर दिल पर पत्थर लिया कुछ उसने ठान।
छू लिए जन्मदात्री के पाँव,बाँध लिया सर पर कफन ।
माँ ने दी क़सम ,पहले है हमारा वतन ।
दे रही थी वो ढेरों दुआएँ , ले रही थी उसकी बलाएँ ।
चूम कर बेटे का मस्तक गर्व से सीने से उसे लगाया ।
किया वीर ने वादा , देर नहीं होगी ज़्यादा ।
कह कर इतना, कदम बाहर की ओर उसने बढ़ाया ।
दर पर ताकतीं रही निगाहें उसके इंतज़ार में ।
छलक उठा आँखों में समुद्र ।
जब तिरंगे में लिपटकर घर उसका शरीर आया ।
भरकर आँखों में नीर कर रही वो यही उम्मीद ।
याद रखना मेरे लाल की शहादत को ।
ना होने देना कभी उसको गुमनाम शहीद ।
जयहिंद
आशा
भाटिया