रिक्तता

अरुणिता
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 चिड़ियों के कलरव से पहले, नयन सदा खुल जाते थे।

भोर सूर्य के दर्शन पा कर, तन मन शक्ति जगाते थे।।

 

पुष्पों की जब मंद सुरभि भी, आँगन में मुस्काती थी।

देख आपकी प्रेम प्रभा को, पूर्वा शोर मचाती थी।।

 

सूर्य तेज सा चमकीला मुख, सात्विक जीवन अपनाते।

दया प्रेम सॅंग मीठी बोली, हँसकर ही करते बातें।।

 

क्रोध न दिखता क्षण भर उनमें, काया थी निर्मल माटी।

नेक कार्य कर नाम कमाए, छोड़ चले यह परिपाटी।।

 

लगता जब आनंदित जीवन, क्यों बाधा घिर आती है।

हर्षित होता मन इक क्षण में, दूजा दुःख थमाती है।।

 

पिता बिना संसार अधूरा, सूना मेरा आँगन है।

आगे बढ़ने का प्रयास है, किंतु सतत विह्वल मन है।।

 

वही भोर है वही किरण पर, पात–पात हैं मुरझाए।

बिना छुए हम चरण आपके, कैसे आगे बढ़ पाऍं।।

 

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

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