परिष्कृत प्रेम का रूप तुममें ही नजर आया था
ये भूल थी मेरी या पूर्वजन्म का प्रेम निभाया था
देखकर यकायक तुमको यूँ लगा था एक पल में
तुम कोई और नहीं हो मेरी ही रूह का साया हो
तृष्णा मेरे मन की न जाने कहाँ खींच लाई मुझे
अश्कों ने जैसे मुझसे जन्मों की यारी है निभाई
तन्हाइयों में यूँ गुजर गया देखो मेरा जीवन सारा
क्यों भूल गए तुम तुम नहीं मेरी रूह का साया हो
प्रेम निभाने के लिए जरूरी तो नहीं मिलन होना
प्रेम की यात्रा चलती अनवरत गर प्रेम दिल से हो
सपनों के भंवर से निकले हुए भ्रमित कोई यात्री
हो
तुम कोई और नहीं हो मेरी ही रूह का साया हो
तुमसे मिलकर ही तो सीखा था जैसे मैंने जीना
भर लिया था आँचल अपना तेरी सुनहरी यादों से
विस्मृत करना कठिन है उन महकी सी बातों को
तुम कोई और नहीं हो मेरी ही रूह का साया हो
प्रेम की कल्पना मीठे ख्वाब से ज्यादा कुछ नहीं
जिस्म के साये में ऐ प्रेम तेरा कोई वजूद भी
नहीं
हकीकत से नाता तोड़ रुहानी अहसास देता हो
प्रेम तुम कोई और नहीं मेरी ही रूह का साया हो
वर्षा वार्ष्णेय
अलीगढ़, उत्तर प्रदेश