इसे मौत की सजा से कम कुछ भी नहीं !
मेले में इसी ने फोड़ा था बम ।
जिसमें मारे गये दो सौ उन्चास
निरीह...
उनका जीवित रहना बहुत आवश्यक था
उन पर आश्रित थीं अनगिनत जिन्दगियां
बहुतों के बुझ गये कुल-दीप
उजड़ गए सुहाग
जिनके होने भर से मौजूद थीं
चेहरे पर चमक
नेत्रों में उज्जवल भविष्य
मजबूत थी बुढ़ापे की लाठी।
इसने यह सब छीन लिया एक झटके में
यह एक आतंकवादी है…।
मी लार्ड! दो सौ उन्चास नहीं;
पूरे दो सौ पचास …।
जो उसे बिल्कुल करीब से जानता था
बोला-
दो सौ उन्चास के पहले भी इसने की थी
एक और हत्या
जो था इसके अंदर का आदमी …
मोती प्रसाद साहू
अल्मोड़ा, उत्तराखण्ड

