कल और आज

अरुणिता
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खूबसूरत थी कल भी 

और खूबसूरत आज भी

कल खुद की नजरों से देखती थी

आज दुनिया उसे देखती है

 

वो अल्हड़ लड़की अब एक स्त्री है

बेबाकी तब्दील हो गई गंभीरता में

चोटी की जगह जुड़े ने ले ली

जिम्मेदारी को कसकर पकड़ रखा है

वही वेपरवाह लड़की....

 

आज रास्ते तलाशती ही नही 

नया बनाती भी है

ताकि कोई नादान सी लड़की

कदम बढाए तो बेफिक्र हो कर...

 

हँसती हुई स्त्री को पसंद करना

जरा कठिन जान पड़ता है

नापती है नजरें वलयाकार होकर

कहीं कोई दाग तो नहीं..

 

वो तराश रही है हर रोज

अपनी कमियों से लड़ती है

स्वयं चुना है उसने इस युद्ध को

आजीवन चुनौती तय है

 

सपना चन्द्रा 

कहलगांव, भागलपुर

बिहार

 


 

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