हिमवंत पिता की छांव में पली
धरती की
लाड़ली बेटी बनी
घाटियों में
खेली कूदी
पर्वतों के
मार्ग बहती चली
पवित्रता के
आंचल में
अपवित्रता
समाहित करती रही
सदानीरा मैं
ही हूँ
हाँ मै ही
गंगा हूँ.....
पिता का
आंगन छोड़ कर
मानव
सेवार्थ प्रण लेकर
निरंतर
प्रवाहित हूँ
शस्यश्यामलाम्
मेरी प्रवृति है
तृषित न रहे
कंठ कोई
जीवनदायिनी
मेरी जीवनी है
कलुषित मन
का कलुष
और छल कपट
पाप की धूल
तिरोहित
करते रहे सदियों से
अपने पाप और
पुण्य के फूल
अल्प समझ की
सोच को तुम्हारी
लहरों में
छुपा लेती हूँ
माँ स्वरूपा
हूँ
हाँ मै ही
गंगा हूँ......
सुक्ष्म से
स्थूल तक जीव समस्त
आश्रय मेरे
आंचल में पाते
पतित पावनी
पुकारे संसार
देवी का
देते सम्मान
प्रदूषित
मनोवृत्ति और कर्मो के कबाड़
शुद्धता में
परिवर्तित कर
मौन, शांत निरंतर बहती हूँ
मोक्षदायिनी
हूँ
हाँ मै गंगा
हूँ......
रश्मि
मृदुलिका
देहरादून, उत्तराखण्ड

