अनुबंध संवेदनाओं का

अरुणिता
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कितने अंतराल के बाद 

इतने करीब से देखा 

आपको 

अचानक से 

हृदय की रिदमता बढ़ गई 

सांसों के परिमंडल में 

उष्णता का अहसास बढ़ने लगा

आपकी बातों की निरन्तरता से 

घुलने लगी कानों में लयता

जैसे कान्हा की बांसुरी बज रही हो  

ये कैसा अहसास है

पता नहीं 

कोई पास या दूर का

संबंध नहीं है हमारा-आपका 

न आशा न विस्श्वास 

नहीं कोई चाह  

देखा जाए तो 

कुछ भी तो नहीं है 

आप में और 

हम में समान सा 

न कोई  देहीक न मानसिक आकर्षण 

फिर भी एक अपनापन 

है दरमियान 

जो हृदय से 

अनुबंध रखता है 

मनुष्यता का

जज़्बात का

संवेदनाओं का ......

 

मंजू किशोर'रश्मि

कोटा राजस्थान 

 

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