हिन्दी का लहराता परचम

अरुणिता
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वर्ण समेटे ख़ुद में वावन

जन-मन का उद्गार है हिंदी।

कहलाती संस्कृत की दुहिता,

शब्दों का भंडार है हिंदी।

 

सूर, सुभद्रा और बिहारी,

का वात्सल्य, श्रृंगार है हिंदी।

तुलसीदास की चौपाई तो

कबिरा निर्गुण धार है हिंदी।

 

दिनकर, पंत, निराला जी का,

प्रेममयी आधार है हिंदी।

सात सुरों से झंकृत मधुरिम,

वीणा की झंकार है हिंदी ।

 

पंजाबी, गुजराती मणि हैं,

तो माला का तार है हिंदी ।

शब्द विदेशी भाषाओं के,

करती अंगीकार है हिंदी।

 

देवनागरी लिपि है इसकी,

भारत माँ का प्यार है हिंदी।

सकल जगत में परचम इसका,

सबको ही स्वीकार है हिंदी।

 

---विनय बंसल

आगरा, उत्तर प्रदेश 

 

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