गगन केवल मगन का ही नहीं
मंगली का भी,
ठीक है मंगली ने
दावा नहीं किया
अपने हिस्से पर,
उसने समर्पण कर दिया
अपना हिस्सा
तुम्हारे नाम
पर उसकी बेटी
खुशबू को समर्पण नहीं भाता
धरती और गगन में
अपना हिस्सा चाहती है
अपनी वजूद के पहचान के लिए
कहती है
अपनी अस्मिता को मिटा
क्या जीना?
उसे संसद और समाज पर
भरोसा नहीं है,
भरोसा है
अपने कंधों पर
बाजुओं पर
पैरों पर,
अपने बल उड़ान भरने को तैयार
खुशबू कह रही
भीख नहीं हमें
सम्मान चाहिए।
कनक किशोर
राँची, झारखंड