वक्त से पहले न आना,
वक्त के पहले न जाना,
जीवन की इस यात्रा से,
वक्त पर होना होगा रवाना।
चाहे इच्छाएं कुछ शेष हो,
चाहे वो पल कुछ विशेष हो,
कुछ भी काज कर रहा हो तन,
प्रस्थान ऐसा कि कुछ न शेष हो।
चाहे बिलखते रह जाए अपने,
चाहे कुछ पूरे करने हो सपने,
महाकाल के आवाहन पर,
पराए हो जाते है सब अपने।
भेजता भी धरा पर भी वही,
बुलाता भी वापस सिर्फ वहीं,
जीवन के इस अकाट्य सत्य पर,
कारण बन जाता है कोई कही।
दुखद दर्दनाक गमन पर,
अश्रुपूरित इस चमन पर,
दर्द धरा ही तो सहती है,
दर्दनाक से इस गमन पर।
अरुणिमा बहादुर खरे
"वैदेही"
प्रयागराज, प्रयागराज