इंस्टेंट मैगी सा रिश्ता क्यों हो गया इतना सस्ता
सरे बाजार
जुड़ता है फिल्मों सा जलवा बिखेरता है
चंद लम्हों
की चमक दमक दिखा सिमटने लगता है
दो परिवारों
का विश्वास चंद पलों में दरकने लगता है।
कहां गया वो
अपनापन, समर्पण, त्याग…
रिश्ता
निभाने का वो भाव,
एक टीम का
सुविचार, हमारे फैसले, हमारा
अधिकार
हमारी खुशी, हमारा घर, हमारे
बच्चे ‘हम तुम अपने’
क्यों ‘स्व’ बदला अहम् में, आया एहसान, त्याग का हिसाब
असंतोष, ईर्ष्या, आक्रोश व
बहिष्कार का विचार
विद्रूप और
हिंसक, क्रोध भरा अहंकार।
कल्पना लोक
में विचराते मीडिया के झूठे इश्तहार
बच्चों को बहकाते
नकारात्मकता ओढ़ाते
विवेकशीलता
का संतुलन डगमगाते
रिश्तों में
षड्यंत्र की दरारें डलवाते ये इश्तहार
वास्तविकता पहचानें
कल्पना लोक से उबरें ना भटकें बने होशियार।
नीलमणि
मवाना रोड, मेरठ