दबे पाँव तेरा
यूं चौखट पे हमारी चले आना
और बिना किसी आहट के
लौट जाना
कान में फुसफुसाते
कह रहा है, किसी चुगलखोर सा
जवां है अभी
हमारी मोहब्बत का
अफ़साना।
बेखबर नहीं हैं हम मगर
बस इक कसक सी है
आ बैठी दिल में
शिकवों की चादर में लिपटी,
बुला रही तुझ बेवफा को
आवाज़ दे खामोशी जिसकी-
गर ज़ख्म दिये हैं तूने,
तुम्ही दवा देना।
-बिमल सहगल
नई दिल्ली