देखकर अन्याय पथ में,
क्या नहीं कुछ भी कहोगे?
आँख यूँ मूंदे हुए तुम
कब तलक चलते रहोगे।
लाड़ली को आपकी कुछ,
गिद्ध देखो नोचते हैं,
काट डालो पापियों को,
क्या अभी तक सोचते हैं,
इन दरिंदों के जुलम यूँ,
कब तलक तुम सब सहोगे,
आँख यूँ मूंदे हुए तुम,
कब तलक चलते रहोगे।
है समय अब हाथ में
हथियार लेना ही पड़ेगा,
पापियों को पाप का,
अब दण्ड देना ही पड़ेगा,
हाथ में ले मोमबत्ती,
कब तलक रैली करोगे?
आँख यूँ मूंदे हुए तुम,
कब तलक चलते रहोगे।
देखता बदनीयती से,
फोड़ डालो आँख उनकी,
कँपकंपाएं पुश्त उनकी,
थरथराये शाख उनकी,
जुर्म तुम भी कर रहे हो,
जुर्म तुम जब तक सहोगे,
आँख यूँ मूंदे हुए तुम,
कब तलक चलते रहोगे।
नरेश चन्द्र उनियाल,
पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखण्ड।