जय भारतमाता देवि रूप।
भावना स्वदेशी अपनाकर
भारत ने पाया नव स्वरूप।
जन - जन में जागा स्वाभिमान,
निर्मित करता नित कीर्तिमान,
सुन नाम शत्रु भी उठे काँप,
बल - शौर्य नहीं पा रहे भाँप,
जल-थल - नभ की सेना सशक्त
नतमस्तक होते महाभूप।
गोली का गोले से उत्तर,
आतंकी को मारें घुसकर,
अब ‘शठे शाठ्यम्’सिद्ध मंत्र,
फल - फूल रहा शुभ लोकतंत्र,
चहुँमुखी प्रगति अद्भूत अपूर्व
जग चकित देखकर छवि अनूप।
पद मिला वैश्विक महाशक्ति,
जन - गण में व्यापी राष्ट्रभक्ति,
सब साथ - साथ, सबका विकास,
छाया समृद्धि का शुचि प्रभास,
घर - घर सुख की पहुँचीं किरणें
पट गए, मिट गए अंधकूप।
भारत ने पाया नव स्वरूप।
-गौरीशंकर वैश्य विनम्र
117 आदिलनगर,
विकासनगर
लखनऊ, उत्तर प्रदेश