फिर कुछ हताशाजनक दृश्य देखने
को मिल रहे हैं | महाराष्ट्र में हिन्दी भाषियों को इसलिए मारा-पीटा
और अपमानित किया जा रहा है क्योंकि वे मराठी नहीं बोल सके |देखा जाए तो यें समाज को
कलंकित करने वाली घटनाएँ हैं | भाषाएँ तो सम्प्रेषण माध्यम हैं | समझ में नहीं आता
कि किसी एक व्यक्ति की मातृभाषा किसी दूसरे व्यक्ति, समुदाय या समाज का क्या अहित
कर सकती है ? और फिर सभी भारतीय भाषाएँ हम सभी भारतीयों की भाषाएँ हैं | यदि कोई
भारतीय अपना स्थायी या अस्थायी प्रवास किसी दूसरे प्रान्त में बना भी लेता है तो
वह स्वयं ही वहाँ के जनसमूह में घुलने-मिलने के लिए वहाँ की भाषा चाहे-अनचाहे सीख
ही लेता है | जो दुर्भावना भारत के कुछ क्षेत्रों में हिन्दी के प्रति है वह तो
विदेशी भाषाओँ के प्रति भी नहीं होनी चाहिए | एक बार को यह तो माना जा सकता है कि
कोई विदेशी भाषा भारतीय संस्कारों की अच्छी संवाहक नहीं है लेकिन यह बात किसी भी
भारतीय भाषा के विषय में बिलुकल भी नहीं कही जा सकती |
भले ही हम अपने-आप को अधिक पढ़ा-लिखा
दिखाने की नौटंकी में अंग्रेजी को देश की सम्पर्क भाषा के रूप वर्णित करते हों
लेकिन यह सच्चाई नहीं है |सच्चाई तो यह है हिन्दी ही आम भारतीय जनमानस की सम्पर्क
भाषा है | देश के हर कोने में हिन्दी समझने वाले मिल ही जाते | भारतीय भाषाएँ
जितनी आपस में जुडी हैं उतनी अंग्रेजी से नहीं | एक तो बहुत सी भारतीय हिन्दी की
तरह ही संस्कृत की पुत्रियाँ हैं और दूसरे भारत की अधिकांश प्रान्तीय भाषाओँ में
हिन्दी और संस्कृत के बहुतेरे शब्द देखने-सुनने को मिल जाते हैं | भारतीय भाषाओं
को एक-दूसरे से अलग करने की चेष्टा पूर्णतया अवांछित और घृणित कार्य है | हिन्दी
बोलने वाली माता का अपने पुत्र के प्रति वही स्नेह और दुलार होता है तो कन्नड़
बोलने माता का होता है | मलयालम बोलने वाला बड़ा भाई भी अपने छोटे भाई का संरक्षण उसी
भाव से करता है जिस भाव से कश्मीरी या पंजाबी बोलने वाला बड़ा भाई | क्योंकि सभी
भारतीयों के संस्कार एक जैसे ही हैं | दुराग्रह फ़ैलाने वालों से सरकार को सख्ती से
निपटना चाहिए |
सभी भारतीय भाषाएँ सभी भारतीयों
के लिए हैं |जय हिन्द|
जय
कुमार
प्रधान-सम्पादक
षष्ठी, शुक्लपक्ष, आषाढ़, विक्रम सम्वत् २०८2