घन

अरुणिता
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धरा सलिल तरसे,

घन अंबर बरसे,

देख कृषक हर्षसे

खुशी से भरा आंगन।

 

घन जब नभ छाए

सबके मन को भाए,

गीत मधुर सुनाएं,

नाच उठे तन मन। 

 

जब बिजली चमके

प्रीत मिलन दमके,

मन मयूर थिरके,

खिल उठे चितवन।

 

नई फसल उपजे,

वृक्ष फल फूल सजे

वसुंधरा खूब लजे,

महकता उपवन।

 

नीतू रवि गर्ग "कमलिनी"

चरथावल, मुजफ्फरनगर

उत्तरप्रदेश 

 

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