गीतों में ढल जाओगे

अरुणिता
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रोओगे, नीर बहाओगे,

या दुख का विष पी जाओगे

अपने तक रक्खोगे इसको

या दुनिया को दिखलाओगे

 

किसको किससे हमदर्दी है

किसके दुख में है कौन दुखी

करुणा का रस ही सूख गया,

अपने में ही हैं लोग सुखी। 

ये ज़ख़्म दिखाने हैं जग को,

या ख़ुद उनको सहलाओगे

 

दुःख की नदिया तर जाने को

हिम्मत की नाव बना लेना। 

अंधियारों से भिड़ जाने को

बस दीपक एक जला लेना। 

क्या टूट-टूट कर बिखरोगे,

या गिर कर फिर उठ जाओगे

  

पीड़ा से उपजे भावों को,

शब्दों का बाना पहनाओ। 

दम घोंट न दें ये सन्नाटे

इस चक्रव्यूह को सुलझाओ। 

चाहोगे मौन बने रहना

या गीतों में ढल जाओगे

 

बृज राज किशोर ‘राहगीर’

ईशा अपार्टमेंट, रुड़की रोड, मेरठ-250001

उत्तर प्रदेश 

 

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