ग़ज़ल

अरुणिता
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कहाँ अब आसमानों की कमी है।

परों  में ही  उड़ानों  की कमी है।

 

सड़क को देखकर सोचा किये सब,

नगर  में आशियानों की  कमी है।

 

छुपा लेती  हैं  आहें बात  अपनी,

सदाओं  में ज़बानों  की कमी  है।

 

कोई लायक़ कहाँ से आये चुनकर,

जहाँ  सच इम्तिहानों की कमी है।

 

ख़रीदारी  में  हुई  जेब  खाली,

यहाँ सस्ती  दुकानों  की कमी है।

 

मज़ा आया नहीं  पढ़कर क़िताबें,

वो  जिनमें दास्तानों  की कमी है।


नवीन माथुर पंचोली

अमझेरा धार 

पिन-454441

मध्य प्रदेश

 

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