फूलटेरो क प्रेम-पत्र

अरुणिता
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भाइयों अउर मेरे अंचलिक परिवेश के मित्रो,
गाँव में कई प्रेम कहानी अधूरी इसलिए रह गयी क्यूंकि उनके नसीब में एक अदद प्रेम-पत्र लिखना कभी न आया।

अब एक प्रेम-पत्र लिखने के लिए, मित्र, कछु अक्षर काले करने की चाह भी होनी चाहिये। प्रेम अइसै ही थोड़े न हो जात हैयूँ  समझ लो कि कोयले की खान हौ। प्रेम-पत्र लिखने में दो अक्षर तो काले करने ही पड़ेंगे  , और फिर हाथ काले होंगे ही। और, हाथ काले न हों, तब तक मोहब्बत की स्याही कहाँ उतरै!

गांव-गिरांव में कई दीगर प्रेमी ऐसे भी रहे, जो अपने प्रेम-पत्र मुझसे लिखवाया करते थे। मैं उनकी चिट्ठी लिख देने के बाद उसकी एक प्रति चुपके से अपने पास भी रख लेता। सोचताकभी ज़िंदगी में हमारी भी कोई कुनकुनी मिल गई तो काम आ जाएगी। पर अफसोस, मौक़ा ही न आया।

ख़ैर, आज वही एक नगीना आप सबके सामने पेश करत हौं।
जियो मित्रों, जी लो अपनी-अपनी मोहब्बत। आज के इस इंस्टा-रील वाले ज़माने में, जहाँ प्रेम की भाषा हम्”, “हूँ”, अउर नेटफिल्गोतक सिमट गई हैसोचो, अगर एक देसी प्रेम-पत्र से रिश्ते की वैलिडिटी बढ़ जाए, तो इससे बढ़कर सुकून क्या होगा?

तो लीजिए, एकदम देसी, गंवई, बुंदेलखंडीबृजबोलीअंचलिक घोल के साथ, मजेदार प्रेम-पत्र। हमने फूलटेरो को थोड़ा पढ़ा-लिखा दिखाने खातिर कछु अंग्रेज़ी शब्द भी घुसा दिए हैं। आप समझ सको तो समझ लेना, नहीं तो कहावत है—“बात आई-गई समझो।



होरे मोरी कुनकुनी,

जय रामजी की, जय राधे-श्याम!

तूं तो जानत हौ, जबै से तोर रूप देखे हौं, मोरो जीयरा ऐसन उछलत रहत है जैसे पोखरे मा कूदि परत भैंस। हियरा मा लहरिया उठत हैं, जइसे मेला मा झूला झूलत बच्चन की हँसी फुट पड़त हो।

पिछली दफा तोर दुपट्टा पनघट पे मटकी भरत-भरत हवा मा लहराय गओ। मंय तो कसम खाय दओ रहौंउ दिन मोरी आँखिन मा गंगा-जमुना संगई बह आय रहीं। तोर रूप देखिके मोरी अँखियाँ ऐसन चमक उठीं, जैसे चिरई रात भर बाबड़ी के कोने मा टिमटिमावत रहि जावैं।

गांव क नुक्कड़ पे जऊन पान की दुकान अहै न, वहीँ मंय रोज़ सपना बुनत रहौं। दुकानदार क पान के साथ तोर यादन क चुना भी मोरी जिह्वा पे लग जावत है। जब तूं बगल से गुजरत है, तो मोरो जियरा ऐसन सुलगत है कि होंटन पे सुलगती बीड़ी भी लजाय जात है।

तूं तो, कुनकुनी, मेला क उ झूमर नृत्य हौजहाँ घाघरा-चुनरी लहरावत रहै अउर मोरो मनवा ढोलक बनिके गूंज उठत है।

सुनि तो
गांव मा कल रात बियाह रहो। बारात मा बाजा-गाजा, आतिशबाजी सब होत रहो। बाकि मोरो ध्यान तो बस तोरे ऊपर रहो। दूल्हा घोड़े पे रहो अउर मंय मन-ही-मन सोचत रहौंकब्बै मोरी कुनकुनी मोरो संग ब्याह रचिहे।

तोरी चाल ऐसन हौ, जैसे गली मा गऊ चरके परत रहैं अउर उनके पाँव मा बँधे घँघुरु झनक उठत हों। तोरी बोली मीठी ऐसन, जइसे गुड़ घुलके पोखरे मा मिल गओ हो।

अब का कहौं

तूं हाँ कर दै, तो मंय अपनौ नाम भैंसहिया क पीठ अउर पोखरे क कीचड़ मा लिखवा दउँ।
तूं हाँ कर दै, तो अपनौ घर आँगन मा तुलसी चौरा पे सात दीया जलवा दउँ।
तूं हाँ कर दै, तो अपनौ प्रेम क ढोल मेला भरवा के बजवा दउँ।

बाकि तूं ना कर दै, तो मोरो मनवा फूट परिहै ऐसन, जैसे पोखरे क बांध टूट गओ अउर सब बहि गओ।

कुनकुनी, तोर अँखियन क जादू ऐसन कि हियरा धक-धक करै, जैसे बाबड़ी मा रहत मेढ़क टर्र-टर्र करैं।
तोर बोल ऐसन कि मेला क गुड़िया क बाल बराबर रुई के मिठाई जइसे मुंह मा घुल जात।

अबकी कजरी तीज मा, जब सब छोरियाँ झूला झूलें, मंय चुपचाप तोरे नीचे पाँव धरि दउँ, ताकि तोरे पैरों क झंकार मोरो कानन मा गूंजत रहै।

गांव क डगर, खेत क मेंड़, कोहनसी ठठ्ठा, मेला क धक्का-मुक्कीसब मा तोर रूप बसा रहो है।
तूं ही मोरी भोर क पहली किरण हौ, अउर सांझ क मंदिर क घंटा।

तो कबहुँ ना भुलइयो कि मोरो नाम फूलटेरो तो बस नाम है। असल मा मंय तोर चिरैय्या हौंतूं मोरे कौवा समझ लेओ, पर तोरे बिना पर पसारै कभौ न सकै।

तोरी एक हाँ मोरे जीवन क गीत बन जइ,
तोरी मुस्कान मोरो दिल क मेला बन जइ।

कुनकुनी,

अब सुनौ तो, सावन क कजरी तीज मा सब छोरियाँ झूला झूलत रहीं।
तोर घाघरा हिल-हिल के झंकार करत रहो, अउर मोरो मनवा ऐसन झूम उठो जैसे ढोलक पे धुन बजे।
तूं जब झूला पे हँसी-हँसी मा झूलत रही, तो लागै कि पूरा अमावस क अंधियारौ रोशनी मा बदल गओ।
तोरी चुन्नी क कोर पे जऊन मोती-फूल जड़े रहैं, वो सब चंद्रमा क किरणन मा चमकत रहैं।

मंय तो चुपके से भीड़ मा खड़ा रहो, पर मोरो दिल क आवाज कजरी-कजरीगावत रहो
कजरी आय गई रे कुनकुनी,
फूलटेरो क जीयरा डोलाय गई रे!

फेर, होरी क बात
कुनकुनी, याद है पिछली बार जब हमनी होरीया मा गली मा रंग-अबीर उड़ावत रहौं?
तूं जबरदस्ती मोरे गाल पे लाल गुलाल मल दओ रही, तो मोरो चेहरा ऐसन दमक उठो जैसे खेत मा सरसों फुलाय रहो।

मंय तो पिचकारी मा रंग भरके कहे दओ रहौं
होरी खेलब नैना नैनन मा,
अबीर गुलाल मिलाबै नैनन मा।

बाकि तूं शरमा के दौड़ गई रहो, अउर मंय अपनौ दिलवा क पोखरा मा डूबत रहो।

कुनकुनी,
ई सावन-भादौं क तीज-त्योहार अउर फागुन क होली सब तेरे बिना अधूरा अहैं।
जइसे कजरी मा बिना ढोलक ताल न जमै,
वैसै मोरो जीवन बिना तोरे ना रंग जमै।

तूं हाँ कर दै, तो हर कजरी मा हम झूला संग झूलबै,
तूं हाँ कर दै, तो हर होरी मा हम संग संग रंग खेलबै।

बाकि याद रखइयो
ई प्रेम क पत्र डिस्पोज़ेबल नाहीं, ई तो आजीवन रीयुजेबल अहै।
एक बेर हाँ कहि दइयो,
तो अपनौ कुनकुनी-फूलटेरो प्रेम गांव क चौपाल पे मिसाल बन जइ।

तोहार प्रेमी,
फूलटेरो पतो-गांव क नुक्कड़, पानवाले क बेंच से


डॉ० मुकेश गर्ग
अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ
गंगापुर सिटी, राजस्थान-३२२२०१

 

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