मीटिंग -मीटिंग

अरुणिता
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मीटिंग हमारे जीवन का एक अंग है।विशेषत: पढ़े लिखे कहलाने वाले उच्च वेतनभोगी कर्मचारी और अधिकारियों के लिए मीटिंग उनके जीवन की संजीवनी बनी हुई है।हालांकि आम आदमी को किसी मीटिंग से कोई लें देना नहीं।वैसे तो मीटिंग आम आदमी भी करता है लेकिन उसकी मीटिंग मोहल्ले की पान और चाय की दुकान पर मित्रों के साथ होती है या फिर गांव में चौपाल पर।वैसे तो आजकल गांवो का भी शहरीकरण हो गया है और चौपाल जैसे स्थान अब लगभग समाप्त हो गए हैं।क्योंकि इन्हें या तो मोबाइल की स्मार्टनेस निगल गई या फिर टेलीविजन के अनंत सारहीन सीरियल और सरकारी चरण वंदन में लगे तथाकथित समाचार चैनल कहलाने वाले डब्बे …..!

  जब भी हम कोई पढ़ा लिखा दिखने वाला नौकरीशुदा नौजवान दिखाई देता है और गलती से हम उससे पूछ लेते हैं,”बंधु कहाँ से आ रहे हो?” उसका सीधा सा जबाब मिलता है,”मीटिंग थी,बस अभी फ्री हुआ हूँ।” किसी भी सरकारी दफ़्तर में जाओ  तो अफ़सर के ऑफिस के बाहर तंबाकू घिसता चपरासी कहा जाने वाला चतुर्थश्रेणी अधिकारी दरवाजे पर ही आपको रोक लेता है और जबाब मिलता है,”साहब मीटिंग में हैं ………।”अधिकारी छोटा हो या बड़ा सभी अधिकारों से युक्त होते हैं।उन्हें अधिकार है जब चाहे मीटिंग करें …………जब चाहें अपनी कुर्सी पर मिलें …..! अब अधिकारी तो अधिकारी है मीटिंग करें या मंत्री जी की चाकरी,हम क्या कर सकते हैं? क्योंकि मीटिंग प्रथम है।मीटिंग ही तो वह सर्वमान्य साधन है जिसके माध्यम से सरकारी,गैर सरकारी,जरूरी - ग़ैर ज़रूरी सभी संवादों को इधर से उधर पहुंचाया जाता है।

        अब हम ठहरे फ़ालतू आदमी,हम भला उनकी व्यस्तता को कैसे समझ सकते हैं।एक दिन हम अपने मित्र गुप्ता जी के घर गए तो देखा कि उनका सुपुत्र अंदर वाले कमरे में ,लैपटॉप सामने रख अग्रेजी में किसी से वाद - संवाद कर रहा था।हमने गुप्ता जी से पूछा, “आपका लाड़ला पिंटू लैपटॉप सामने रख कर किससे गिटर -पिटर कर रहा है।” गुप्ता जी ने सीना चौड़ा कर कहा,”उसका ऑफिस चला रहा है शर्मा जी, वह ऑफिस की मीटिंग में है।”

हमने आश्चर्य से पूछा,”लेकिन घर पर ऑफिस…….! ऑफिस की मीटिंग तो ऑफिस में ही होनी चाहिए?”

गुप्ता जी ने मुस्कराते हुए कहा,”शर्मा जी आप भी कौनसे जमाने की बात कर रहे हैं …….?आजकल घर पर ही ऑफिस होता है।सभी बड़ी बड़ी कंपनी में वर्क फ्रॉम होम ही चलता है।ऑफिस तो कभी कभी ही जाना होता है।बेटा सरकारी दफ्तर में नहीं बड़ी आई टी कंपनी में है।हमारे जमाने में बात अलग थी।हम कभी कभी ही ऑफिस का काम घर पर करते थे ,लेकिन आजकल जमाना बदल गया है इनका सारा ऑफिस ही घर पर होता है।या यूँ कहें कि इनके कंधों पर लटके लैपटॉप में ही इनका ऑफिस है।दिन हो या रात,बस ऑफिस हमारे साथ।”

ऑफिस घर पर ही हो वहाँ तक तो ठीक है लेकिन हमने जब भी देखा तब वे केवल लैपटॉप पर बतियाते हुए नज़र आए।गुप्ता जी से जब भी पूछते बेटा पिंटू क्या कर रहा है,उनका बस एक ही जबाब मिलता,”बेटा ऑफिस की मीटिंग में है।” सुबह हो या शाम जब भी पूछ लो बस एक ही जबाब,”मीटिंग में है” कई बार मन में जिज्ञासा हुई कि एक बार पूछें तो सही कि आख़िर ये कैसी मीटिंग होती हैं की समाप्ति का नाम ही लेती।

आख़िर एक दिन हमने उन्हें अपनी पकड़ में ले ही लिया और पूछ बैठे,”बेटा पिंटू,हमें एक बात समझाओ कि मीटिंग में आख़िर तुम करते क्या हो? रोज़ रोज़ मीटिंग में ही व्यस्त रहते हो।” उसने हमें समझाया कि मीटिंग तो मीटिंग होती है अब आपको क्या समझाऊँ,आप नहीं समझेंगें अंकल।अब उनकी बात भी सही है तकनीकी लोगों की बातें भला हम क्या समझते,लेकिन फिर भी इतना तो है कि मीटिंग में कुछ तो है।

एक रविवार को प्रात: भ्रमण के बाद घर पहुँच कर हमने श्रीमती जी को पुकारा तो कोई उत्तर नहीं मिला। बिटिया से पूछा तो मालूम पड़ा कि श्रीमती जी मोहल्ला मीटिंग में गई हैं।उनके आने पर हमने पूछ लिया,”भाग्यवान,कहाँ से आगमन हो रहा है देवी जी का?” उन्होंने हमारे ऊपर तिरछी नजर डालते हुए जबाब दिया,”मीटिंग से …….!”

हम बड़बड़ाए ,”तुम्हारी कौनसी मीटिंग आ गई …….कहीं अफ़सर लग गई हो या फिर नेताओं की जमात में भारती हो गई हो?”

उन्हें शायद हमारे मधुर वचन अखर गए और भृकुटि तानते हुए हमारे ऊपर पड़ौसी देश के आतंकी की तरह उग्र होकर तुरंत हमला किया,”क्यों ………? क्या महिला मंडल मीटिंग नहीं कर सकता ……?”

इस हमलावर स्थिति का पूर्व आभास होते हुए भी हम लाचार सरकार की तरह बिल्कुल भी तैयार नहीं थे।हम सहज रहे,क्योंकि हम गांधीवादी है।हमारे विचार भले ही समाजवादी हों लेकिन हम दिखते सनातनी हिन्दुवादी ही हैं,क्योंकि इसीमें ही हमारा व्यक्तिगत हित है।जिस तरह से हम चाह कर भी सत्ता पक्ष से कभी भी दमदारी से कोई सवाल नहीं कर पाए उसी तरह हम श्रीमती जी के सामने भी अपना पक्ष मजबूती से नहीं रख पाये।फिर भी कुछ ऐसे साहसी पत्रकार की तरह जो कुछ कहना तो चाहते हैं लेकिन अपनी नौकरी भी सुरक्षित राखन चाहते है,हमने पूछ ही लिया,”क्या हुआ मीटिंग में?”

वे तुरंत मीटिंग के बाद प्रेस से बात करने के अंदाज़ में बोली,”पूरे मोहल्ले की महिलायें थी वहाँ…… क्या बढ़िया व्यवस्था थी……मीटिंग हॉल में बढ़िया कालीन बिछा था …… मजा आ गया …….।”

हमने अपना प्रश्न पुन: दोहराया,”मीटिंग में क्या हुआ?”

श्रीमती जी फिर से चहचहाती हुई बोली,”तुम्हें मालूम है,आज सभी ने मेरी साड़ी की कितनी तारीफ़ की …….सभी को मेरे साड़ी का डिजाइन और कपड़ा,बहुत ही पसंद आया,कुछ ने तो पूछा भी कहाँ से ली है ……..मैंने तो कहा दिया,ये साड़ी तो मेरे भाई ने दिलाई है,क्योंकि यदि उन्हें दुकान बता देता तो मेरे जैसे ही साड़ी न जाने कौन कौन ले आता ….. फिर मेरी साड़ी की भला क्या वैल्यू रह जाती?”

हमने एक बार फिर से पूछा,”लेकिन भाग्यवान,मीटिंग में क्या हुआ?”

श्रीमती जी भी किसी नेता जी कम नहीं नहीं थी उनका वक्तव अपनी धुन में चल रहा था,”मीटिंग के बाद महिला मंडल की तरफ़ से जो बढ़िया कचौड़ी,काजू कतली मिठाई,गर्मागर्म पकौड़े और अदरक की चाय सभी को मिली,बस मजा आ गया।”

अब गर्मागर्म पकौड़े,कचौड़ी,चाय के नाम से एक बार तो हम भी बहक कर लीक से हटाने ही वाले थे कि हम हमारे मूल प्रश्न पर पुन: आ गए और एक बार फिर से धीरे से बड़बड़ाए,”भाग्यवान ,क्यों हमें गर्म चाय पकौड़ो में भटका रही हो? मैं पूछ रहा हूँ कि मीटिंग में क्या हुआ?”

         इस बार श्रीमती जी पूर्णरूप से हमलावर स्थिति में थी।वे क्रुद्ध बादलों की तरह गरजते हुए बोली,क्या बार बार एक ही रट लगा रखी है,मीटिंग में क्या हुआ,मीटिंग में क्या हुआ ……….इतनी महिलाओं के बीच कोई कैसे सुन सकता है कि कौन क्या कह रहा है ,बड़ी मुश्किल में तो मोहल्ले की सभी महिलायें एक साथ इकट्ठी हुई थी।अब वे सब अपनी -अपनी आपस में सुनाती या मीटिंग की सुनती ……? जो मैं बता रही हूँ वो तो सुन नहीं रहे हो,बस बार- बार एक बात ………..मीटिंग में क्या हुआ ……मीटिंग में क्या हुआ ….?

जिस तरह सत्ता पक्ष के आलाकमान की नाराजगी का सामना करने की स्थिति में ,आम नागरिक अपने आप को लाचार व्यक्ति की पंक्ति में खड़ा पाता है ठीक कुछ वैसी ही स्थिति श्रीमती जी के सामने हमारी भी हो ही जाती है।हालांकि मैं कभी सार्वजनिक रूप से अपने आप को सत्ता के सामने निरीह प्राणी नहीं मानता लेकिन फिर सच यही है कि हम सभी सत्ता के चाबुक के सामने बेचारे बन जाते हैं।इस बदलते माहौल में मैं भी कभी- कभी सोचता हूँ किक्यों न मैं भी किसी मीटिंग का हिस्सा बन कर अपने आप को व्यस्त कर लूँ और शान से कहूँ मैं भी मीटिंग में हूँ।


डॉ० योगेन्द्र मणि कौशिक 

C-405 ट्राइपोलिस ,सिटी मॉल के सामने 

राजीव गांधी नगर ,कोटा -324005

Mob 93526129390

 

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