एक गलत फ़ैसला

अरुणिता
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आज राधा जी के चेहरे पर बरसों बाद रौनक थी। सुबह से ही घर में उनकी व्यस्तता गूँज रही थीकहीं फूल सजा रही थीं, कहीं रसोई में झाँक रही थीं। बेटी प्रिया पहली बार शादी के बाद मायके आ रही थी। पगफेरा की रस्म का बहाना था, वरना तो ससुराल वाले उसे इतनी जल्दी भेजते ही कहाँ!

दरवाज़े पर गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया तो राधा जी का दिल धड़क उठा। लोटे का जल लेकर उन्होंने बेटी का स्वागत किया। मगर जब दामाद के न आने की बात सुनी तो उनकी आँखों की चमक थोड़ी फीकी पड़ गई।

प्रिया बदल गई थीकभी खिलखिलाने वाली, अब चुप-सी। फ़ोन पर भी बस छोटे-छोटे जवाब। माँ के मन में आज एक अजीब बेचैनी थी।

भोजन के बाद, जब माँ-बेटी कमरे में लेटीं, राधा जी ने हिम्मत करके धीरे से पूछा
बेटा, तू खुश तो है न?”

प्रिया हल्की मुस्कान लाई, पर वह मुस्कान आँखों तक न पहुँची। बोली
माँ, देखो न, कितने गहने हैं मेरे पास, कितने दामी कपड़े... बड़ी गाड़ी में आई हूँ। और क्या चाहिए आपको?”

राधा जी ने उसका चेहरा थाम लिया
ये सब तो है, पर तेरे चेहरे की उदासी मेरी आँखों से छुपी नहीं। सच बता, मन में क्या है?”

प्रिया का स्वर काँप गया।
माँ, शादी में खुशी कब से मायने रखने लगी? आपने कहा था लड़का अफसर है, कुंडली भी मिल गई है, हाँ कर दो। मैंने आपकी बात मान ली। लेकिन मेरी पसंद, मेरा मन... आपने कभी नहीं पूछा। आज मैं जेवरों से लदी हूँ, पर अंदर से खाली हूँ। अगर मेरी शादी किसी ऐसे से हुई होती जो मुझे समझता... तो शायद आज आपके सवाल का जवाब मेरे चेहरे पर ही दिख जाता।

कुछ पल कमरे में गहरी चुप्पी छा गई। फिर प्रिया ने ठंडी साँस लेकर कहा
हाँ माँ, गाड़ी में ढेर सारे उपहार रखे हैं। रिश्तेदारों में बाँट देना। सबको लगेगा कि मैं सुखी हूँ।

राधा जी की आँखों से आँसू बह निकले। उन्हें लगा जैसे उनका अपना ही फ़ैसला उनकी बेटी की सबसे बड़ी कैद बन गया है।
काश उस दिन उन्होंने कुंडली के साथ-साथ दूल्हे के व्यक्तित्व और बेटी की इच्छाओं को भी परखा होता... तो आज इस घर का माहौल कुछ और होता।

प्रज्ञा पाण्डेय मनु

 

 

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