मन में दुःख, वेदना, पीड़ा व अनगिनत आशंकाओं के साथ आज मैथिली पूरे तीन दिनों के पश्चात अपने घर आई थी. घर के भीतर प्रवेश करते ही व्यवस्थित हॉल देख कर मैथिली को बड़ा आश्चर्य हुआ. उसने पूरे घर में एक सरसरी सी नजर दौड़ाई तो उसने पाया कि पूरा का पूरा घर ही सुव्यवस्थित है. आमतौर पर ऐसा होता नहीं था, जब तक वह स्वयं घर की साफ-सफाई ना करे पूरा घर अस्त-व्यस्त ही पड़ा रहता, परन्तु आज का दृश्य कुछ और ही था. उसके तीन दिन की अनुपस्थिति के बावजूद घर की हर वस्तु अपने सही स्थान पर थी.
बेटी खुशी और बेटे हर्ष ने
मुस्कुराते हुए मैथिली का स्वागत किया. पति राघव ने सहारा देकर उसे उसके कमरे तक
पहुंचाया, जिसकी
जरूरत वह महसूस नहीं कर रही थी. यह सब मैथिली की उम्मीदों से परे था. मैथिली
हॉस्पिटल जाने से पूर्व और आज वहां से घर लौटते हुए सारे रास्ते बस इस दुविधा में
थी कि क्या अब वह पहले की तरह अपने घर परिवार को संभाल पाएगी...?घर
बाहर के सारे काम उसी प्रकार कर पाएगी जैसे पहले किया करती थी...?
घर परिवार की सारी जिम्मेदारियां
सुचारू रूप से निभा पाएगी या नहीं. इन सभी बातों को लेकर उसके मन में आशंकाएं थी.
ऐसे ही अनगिनत आशंकाओं से मैथिली घिरी हुई थी. इन सभी प्रश्नों के अलावा उसके भीतर
एक अंतर्द्वंद्व यह भी चल रहा था कि डॉक्टर की सलाह मान कर उसने कहीं कुछ ग़लत तो
नहीं कर दिया. प्रकृति या अपने संग उसने कोई खिलवाड़ तो नहीं कर लिया है. उसे इस
बात का भी डर था कि उसके द्वारा उठाए गए इस कदम का उसके बीस वर्ष की बसी-बसाई
गृहस्थी पर कहीं बुरा प्रभाव ना पड़े.
मैथिली को राघव पर पूरा विश्वास था,
वह जानती थी कि राघव एक समझदार पति
है लेकिन वाबजूद उसके बार-बार वह यह सोच कर विचलित हो रही थी कि अब वह राघव को
पत्नी सुख नहीं दे पाएगी और फिर राघव चाहे कितना भी अच्छा व प्यार करने वाला पति
क्यों ना हो, आखिर
है तो वह भी एक पुरुष ही, जिसे
पत्नी सुख चाहिए. उसके इस कदम के बाद कहीं राघव उससे मुंह ना फेर ले. मैथिली के मन
में उठ रहे इस ज्वार-भाटे का कारण बस इतना था कि अब वह स्वयं को अपूर्ण,असक्षम
व अपने पति के लिए खुद को आयोग्य समझने लगी थी.
बेड रूम में पहुंच कर राघव ने
मैथिली से कहा -
" तुम थोड़ी देर आराम करो. मैं
तुम्हारे लिए कुछ खाने का ले कर आता हूं."
इतना कह कर राघव वहां से चला गया और
मैथिली बिस्तर पर लेटी आज से सात-आठ महीने पहले अपने मासिक धर्म में आए परेशानी के
विषय में सोचने लगी. वह आज भी नहीं भूली वो दिन जब अचानक पहली बार मासिक धर्म के
दौरान उसे बहुत अधिक रक्तस्राव व पीड़ा होने लगा. वह बहुत अधिक घबरा गई थी लेकिन
उसने किसी से कुछ नहीं कहा और ना ही अपने गाइनोकोलॉजिस्ट के पास गई. धीरे-धीरे
अधिक रक्तस्राव व पीड़ा अब हर महीने की समस्या बन गई. जिस वजह से उसका हिमोग्लोबिन
कम होने लगा. थकान, चिड़चिड़ापन
और चक्कर की शिकायत भी होने लगी. मैथिली की सेहत दिन प्रतिदिन गिरने लगी,
मैथिली के गिरते स्वास्थ्य को देख कर
राघव ने कई बार मैथिली को हेल्थ चेकअप के लिए कहा लेकिन वह हर बार टाल गई.
कुछ महीनों बाद मैथिली को यह भय
सताने लगा कि कहीं मासिक धर्म के दौरान होने वाला अत्यधिक रक्तस्राव किसी गंभीर
बीमारी का रूप ना ले ले, तब
उसने अपनी मां, सासू
मां और अपनी अभिन्न सहेली माला से अपनी समस्या को साझा किया,
उस वक्त सभी ने बस एक ही सुर अलापा.
सभी ने मैथिली से यही कहा-
"यह कोई बड़ी समस्या नहीं है. कई बार
महिलाओं को ऐसा होता है. कुछ महीनों बाद सब ठीक हो जाएगा."
माला ने तो मैथिली को एक-दो दवाईयों
के नाम भी सजेस्ट कर दिए और उससे कहा -
"
यदि ज्यादा रक्तस्राव व पीड़ा हो तो
किसी भी मेडिकल स्टोर से यह दवाई लेकर खा लेना सब ठीक हो जाएगा."
मैथिली पढ़ी लिखी और समझदार होते हुए
भी अपनी नासमझी का प्रमाण देने लगी. माला के कहे अनुसार बिना किसी डाक्टर के सलाह
उन दवाईयों का उपयोग करने लगी जो मैथिली के स्वास्थ के लिए सही नहीं था.
एक रविवार अचानक किचन में काम करते
हुए मैथिली गिर पड़ी और बेहोश हो गई. अस्पताल ले जाने पर सारी बातें स्पष्ट हुई.
कुछ मैडिकल टेस्ट करवाने पर पता चला कि मैथिली के यूट्रस में फाईबराइड्स हो गए है
जो बढ़ रहे है इस वजह से यूट्रस निकालना पड़ेगा. यह सुनते ही मैथिली के माथे पर
चिंता की लकीरें खिंच गई. रिश्तेदारों और मित्रों की सलाह,
सुझाव और घरेलू उपचार के नुस्खों की
झड़ी लग गई. जितने लोग उतनी बातें. लेकिन राघव ने किसी की ना सुनी और ना मैथिली को
किसी की सलाह पर अमल करने दिया.
इतनी परेशानियों के बावजूद मैथिली
मानसिक रूप से स्वयं को बच्चादानी निकलवाने के लिए तैयार नहीं कर पा रही थी. ऐसा
इसलिए भी था क्योंकि माला ने उससे कहा था कि यूट्रस निकलवाने के बाद स्त्री पहले
की तरह नहीं रह जाती है. पति को पत्नी सुख नहीं दे पाती है और यूट्रस ही स्त्री को
पूर्ण स्त्री बनाता है.
डाक्टर की काउंसलिंग के बाद मैथिली
यूट्रस रिमूव करने के लिए मान तो गई किन्तु उसके मन की शंकाएं पूर्ण रूप से दूर
नहीं हुई. ऊपर छत की ओर टकटकी लगाए निहारती मैथिली अपने ही विचारों में खोई हुई थी
तभी राघव हाथों में सूप लिए कमरे में आ पहुंचा. राघव को देख मैथिली उठने लगी तो
राघव ने उसे लेटे रहने का इशारा किया. बावजूद उसके मैथिली उठ कर बैठ गई. उसकी
आंखें डबडबाई हुई थी.यह देख राघव मैथिली के करीब जा बैठा और उसके हाथों को अपने
हाथों में लेते हुए बोला -
"अब तुम्हें चिंता करने की कोई
जरूरत नहीं है. बुरा समय अब बीत चुका है,
मैं तुम्हारे साथ हूं,
पूरा परिवार तुम्हारे साथ है. बस कुछ
ही दिनों में तुम पहले की ही तरह स्वस्थ हो जाओगी. वह सब कर सकोगी जो पहले किया
करती थी."
राघव के इतना कहते ही मैथिली की
आंखें छलक आई और वह राघव के कांधे पर अपना सर रखते हुए बोली -
"क्या सचमुच अपना यूट्रस रिमूव
करने के बाद भी मैं वह सब कुछ कर सकती हूं जो पहले किया करती थी और क्या इसका
हमारे वैवाहिक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ेगा..?,
क्या आपका प्यार मेरे प्रति कम नहीं
होगा...? क्या
मैं अब भी पूर्ण हूं?"
मैथिली के इन सवालों पर राघव उसके
माथे को चूमते हुए बोला -
" कोई भी
स्त्री यूट्रस रिमूव करने से अपूर्ण नहीं हो जाती, यह मिथ्य है और ना
ही इससे वैवाहिक जीवन पर कोई फर्क पड़ता है. रही बात प्यार की तो प्यार मैं तुमसे
करता था और करता रहूंगा. वैसे भी पति पत्नी का प्यार केवल दैहिक नहीं होता."
ऐसा कहते हुए राघव
ने मैथिली को अपनी बाहों में भर लिया. राघव के प्यार और उसके बाहों के घेरे में
मैथिली स्वयं को सुरक्षित व पूर्ण महसूस कर रही थी.
डॉ० प्रेमलता यदु
बिलासपुर
छत्तीसगढ़

