कैसे परिणय सफल हो पाए

अरुणिता
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लाख    मिलाए     कुंडलियां     पर,

एक   मन  ही , जो   न  मिल   पाए।

लाख  जतन हो   आगे चलकर फिर 

परिणय कैसे   वह  सफल  हो पाए।

बैठ   यज्ञ   की   पावन   वेदी    पर 

भावों  की  समिधा स्वाहा कर आए।

प्रेम   अपूरित   संकल्प   हृदय  धर   

बस   झूठे   बंधन   में   बंध   जाएं।

विस्मृत   कर  अपना   हित   अहित

समर्पण   हेतु    वह   ढोंग    रचाए।

हो   परिपूर्ण   कुशल   अभिनय  में

परिणय  को   ऐसा  कलंक  लगाए।

मानवता   के   बत्तीस   टुकड़े   कर,

मानुष से पशु  उस  क्षण  बन जाए।

त्याग समस्त  लोक मर्यादा जग  की

कृत्य  को   परिमाणित   कर   जाए।

ऐसे  परिणय  सूत्र पर  फिर  क्यों   

यह  मानव  समाज  आवाज   उठाए।

तज लोक लाज कुल मर्यादा नर नारी

स्वयं स्वार्थ सिद्धि हेतु दिन दिखलाएं।।

 

सीमा शर्मा 'तमन्ना'  

नोएडा उत्तर प्रदेश

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