ग़ज़ल

अरुणिता
By -
0

1

ख़ुद को  जब ऊँचाई देगा।

तब ही  वो दिखलाई देगा।

 

फिर मिल जाएगा चुप को घर,

जब  दिल को तन्हाई देगा।

 

मुन्सिफ़  जब गूंगे - बहरे हैं,

कितनी  और  दुहाई  देगा।

 

मतलब रक्खी बातों में अब,

तर  कितनी चिकनाई देगा।

 

असली-नकली पहचाने बिन,

किन- किन को भरपाई देगा।

 

लय, सुर,ताल सधे होंगे जो,

हाथों    में   शहनाई   देगा।

 

मिलकर  उनकी  रानाई  से,

बदले    में    शैदाई   देगा 

2

अपनी एक कहानी फिर से।

बातें  और ज़बानी  फिर  से ।

 

भूली बिसरी दिल तक आई,

यादें आज  पुरानी  फिर  से। 

 

बदली जबसे चाल समय  ने,

मचली जोश-जवानी फिर से।

 

तेज  हवा  से  पर  टकराये,

जागी और  रवानी  फिर से।

 

भूल चुके थे जिसको पहले,

लौटी  वो  नादानी  फिर  से।


 नवीन माथुर पंचोली

   अमझेरा धार, म0प्र0

 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Out
Ok, Go it!