निश्छल प्रेम

अरुणिता
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मेरी  जिन्दगी 

रिश्तों का 

ठहरा हुआ जल

स्पदंन रहित 

उदास सी

तुम आजाओ

बरस जाओ

प्रेम बूंदो से

तरंगित करदो

उठने दो लहरें

मैं क्यों ओढू 

रिश्ते 

नाम का लबादा

रोकता है नाम

उलझाता है 

मान सम्मान 

उलझन में 

सुलगती अग्न

तुम आओ

बरस जाओ

बन बादल 

भिगोदो मुझे 

प्रेम में सघन

गल जाये 

रिश्तों का लबादा

रह जाये बस

उन्मुक्त  प्रेम

निश्छल प्रेम 


वी पी दिलेंद्र

मानसरोवर, जयपुर

राजस्थान   

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