समय के फेर

अरुणिता
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करू–करू लोगन के बोली,

मोला अब्बड़ रोवाथे।

कच्चा लकड़ी कस गुँगवावत,

अंतस के पीरा सहिथँँव,

बैरी होगे ये दुनिया हर,

घुट–घुट के मँय हा रहिथँव,

कोन जनी का करम करे हँव,

ये दुनिया बड़ तड़पाथे।।



गोसँइया हा रहिस संग मा,

रोज मिलय जेवन पानी,

छोड़ चले घर के मुखिया हर,

बिरथा लगथे जिनगानी,

ताना मारे लोगन मोला,

दुरिहा ले सब हड़काथे।।



मोर जीव हा कलपत रहिथे,

अब काकर जाँव दुवारी,

भीख मांग के हर दिन खाथँव,

हावँव मँय हा दुखियारी,

मोला आवत देख सबो झन,

फाटक झट ले ओधाथे।।



भाग फूट गे मोर देवता,

कइसे तैं नियम बनाये,

जिनगी के का खेल रचे हस,

मोर समझ कुछु ना आये,

अपन शरण मा ले जा मोला,

दुनिया हा बड़ भरमाथे।।




प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

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