गजल

अरुणिता
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साथ हम भी जमाने के चलते रहे

वक्त का कुछ ना एहसास हमको हुआ

जिंदगी का मुझे किसने पैगाम दी

कौन देता रहा हर तरह बद्दुआ।

किसके आमद से हम खौफ खाते रहे

किसके साए में बेहतर सुकून मिल गया

किसके दीदार से दिल को राहत मिली

किसके रुखसत से बै नूर यह दिल हुआ।

गम खुशी जो मिले सब मुनासिब मुझे

जिंदगी हर तरह आजमाता रहा

कब फिजा में मुकद्दर यह गर्दिश किया

नूर से चांद के कब नहाते रहे।

कब किसी बात पर दिल ये बोझिल हुआ

किसने हमको दिया हर तरह बद्दुआ।

मस्त खुद में सदा से जमाना रहा

कौन मारता जमाने में किसके लिए

याद कुछ भी नहीं अब मुझे खासकर

क्या लिए हम जमाने से और क्या दिए ।

सब हो आवाद देती रही मैं दुआ

फिर भी हमको मिला हर तरह बद्दुआ

साथ हम भी जमाने के चलते रहे

वक्त का कुछ ना एहसास हमको हुआ।


 विभा झा
 सहरसा, बिहार ।

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