हम किसी और के हो गए

अरुणिता
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          प्यार में हम ओर  छोर से  सराबोर  हो  गए

तुम ना मिली  हम  किसी  और  के  हो गए

 

बदले  तुम और  बदला तुम्हारा वो  फैसला

तुम हमकों  बदलकर कैसे दलबदल हो गए

 

बिन पानी के  सुखी नदी जग में पूजी जाती

बालू होकर हम  क्यों नदी  से अलग हो गए

 

जन जन को मन वचन की बात कहने वाले

तन जतन कर मन वचन से वो झूठे हो  गए

 

हम क्यूँ  रोये  अभी छुप छुप के अकेले  में  

वो बदली हम खुद को बदल अलग  हो गए

 

जग को बताने हमको उनसे कितना प्यार है

गिर के संभला  और  खुद फिर खड़े हो गए

 

छोड़ हमको  तुमने भी किसी का हाँथ थामा

वो थामी  हाँथ हमारा और हम उनके हो गए

 

सात वचन सात फेरो  के  साथ  लगा  सिंदूर

हम दोनो अजनबी  फिर एक दूजे के हो गए

 

रहना था साथ अभी पर अब तुम गैर हो गए

तुम ना  मिली  हम  किसी  और  के  हो गए

 

 

सोमेश देवांगन

गोपीबंद पारा पंडरिया

कबीरधाम, छतीसगढ़

 

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