कबाड़

अरुणिता
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       मीतू आज दीपावली की सफाई शुरू करने जा रही थी। सोचा  सबसे  पहले गैर जरूरी चीजों की एक लिस्ट बनाए फिर उनको या तो फेक देगी या किसी को दे देगी। फिर उसने सोचा की ये तो वह हर साल करती आ रही थी। और इस काम को तो वह बाई की मदद से भी कर सकती है।

    
फिर मीतू ने सोचा की क्यूं ना पहले अपने दिमाग
  और दिल की  सफाई करें । कष्ट देने वाली यादों को फेक दे। लोगो के लिए पल रही  कड़वाहट जो जाने कब से दिल दिमाग में जगह घेरी हुई है। उन्हें फेक कर कुछ अच्छी यादो के लिए दिल दिमाग को खाली किया जाय। और जिन रिश्तों को जाने कब से सिर्फ  ढो रही हैं उनके सड़े गले बंधन को तोड़ देगी। और इस सोच से ही वह बहुत हल्का महसूस कर रही थी।

इस तरह इस बार की दीपावली में उसका मुख एक अलौकिक तेज से ज्योतिमान हो रहा है।

प्रज्ञा पाण्डेय  ‘मनु’

वापी गुजरात

 

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