खामोश रहने दो

अरुणिता
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खामोशी की की भी जुबान होती है।

जिसमें छिपी जज्बातों की,  दास्तान होती है।

हो जाता है मुश्किल, खामोशी को समझना।

नही होता मन के, जज्बातों को समझना।

 

चाहें तो शब्दों को, कागज पर उखेर दें।

या शब्दों को स्वरों के बोल दे,  गुनगुना दें ।

हालें दिल को इशारों से,  बया  कर जता दें।

पर फिर भी क्या वो देगा, जवाब खामोशी से।

 

माना की शब्दों में होती, तो है जुबान।

लेकिन फिर भी क्यों नही, होता वो मेहरबान।

खामोशी की जुबान में भी,  इकरार होता है।

कभी गुस्सा तो कभी, प्यार भी होता है।

 

खामोशी की एक अलग, कहानी होती है ।

सच्चाई तो कभी झूठ की, भी शान होती है।

कभी रिमझिम बरसात की,  वो खामोशी।

कभी जुनून बनती, दिलों के इजहार की खामोशी।

 

कभी देखकर भी दूसरों की कमी, की खामोशी।

कभी किसी की तारीफ, न करने की खामोशी।

कभी युद्ध के बाद छाई, चाहूं ओर की खामोशी।

कभी सब कुछ पा कर, अभिमान की खामोशी।

 

बस एक विनती करती,कवयित्री अंजनी ।

न करो कोई जीवन में, अपने गंदगी।

इस खामोशी को बस रहने दो, अब खामोश।

 कैसे कोई तो समझेगा,भरेगा शब्दों में जोश।

 

अंजनी अग्रवाल ओजस्वी

कानपुर नगर उत्तर प्रदेश

 

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