प्रतीक्षा

अरुणिता
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 क्यूं मुझसे रुठे तुम?

विश्वास तोड़ कर भागेतुँ

बने झूठे तुम ।

क्यों चले गये?

जाते -जाते मेरी

गलती तो बताते।

बिना बताएं क्यों?

मुझको सताते।

एक बार मुझे उस रुठने

का अहसास तो दिलाते।

कितने सपने संजोए थे

जीने मरने की कसमें खाई।

सात जन्मों का साथ

एक पल में छोड़ा हाथ ।

रुठ गये किस बात

बीत रही थी रात।

तोड़े सब जज़्बात

फिर की नहीं मुलाकात।

सहती  रही आघात

फिर भी जुड़ी रही यादों के साथ

यादों का सहारा था पास

मुझे पूरा था विश्वास

लगी हुई थी आस।

आवाज़ देकर बुलाओगे एक बार

खुल जाएंगे मन के द्वार

एक दिन आओगें जरुर

दिल मेरा बोला हुजूर

एक दिन टूटेगा गुरुर

वो दिन होगें नहीं दूर

करके सोलह शृंगार

बैठी मैं तो द्वार

किया मैंने दिल से प्यार

इसीलिए हो रही बेकरार

करूंगी प्रतीक्षा तब-तक

जब तक बुलाओगे नहीं एक बार

जब-तक टूटेगी ना सांस

मन रहेगा उदास

करती रहूंगी अरदास


डॉ
0 रेखा जैन शिकोहाबाद

गणेशनगर, नयी दिल्ली

 

  

 

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