ऐ खुदा

अरुणिता
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 ऐ खुदा मेरी दुवाओं में असर कर दे।

ईट पत्थर के इस  मकां घर कर दे।

 

जिनको कत्ल करना है मेरा

उनके हाथों में अब खंजर धर दे।

 

बुढ़ापे में  साथ छोड़ दिया बच्चों ने

उस बूढ़ी मां का तू गुजर बसर कर दे।

 

 दिलों में नफरत की फसल  बोते हैं जो

उनके खेतों को तू अब  बंजर कर दे।

 

एक पैसे मे जो सकड़ो दुवाये देता है

उस फ़कीर की  झोली में बरकत भर दे।

 

सच की राह पे चलने वाले की

कुछ तो आसान डगर कर दे।

 

तमाम उम्र बस इंतजार किया जिसका

 उससे एक मुलाकात तो मयस्सर कर दे।

 

मेरी ख़ामोशी को वो समझाता नहीं है

मेरे जज़्बात उसको तू बयां कर दे।

 

 दिल को खिलौना समझने से

बेहतर हो तू  चाक जिगर कर दे

 

 

प्रज्ञा पांडे,(मनु)

वापी गुजरात

 

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