अपनी होली हो जाएंगी

अरुणिता
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 जब खेलने आयेंगे होली 

तो ऋतु में भी मादकता छायेगी

   

              जब नयन छबीले देखेंगे

              तो काम के भी बाण चढ जायेंगे

              मिलेंगे रंग तेरे गालों से 

             तब रंग अपना रंग भूल जाएंगे

 

रंग भी तेरे गालों का रंग देख के

लज्जित अपने रंग पे हो जाएंगे

इन रंगों से रंगोगी जब तुम 

तब गान तुम्हारा अप्सरा भी गाएंगी

              ऐसे खिलेंगे रंग तेरे चेहरे पे

              रंगों की भी क़िस्मत जाग जायेंगी 

             मिलके तेरे चेहरे रंग से

             रंगों की भी अपनी होली हो जाएंगी 

   

 

भरत मिश्रा

सफीपुर

उन्नाव, उत्तर प्रदेश

 

 

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