सूखी डाली की व्यथा

अरुणिता
द्वारा -
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तुम टूट के पत्ते से बिखर गये 

मै टूटी सुखी डाली सी ।

पानी बरसा धूप लगी 

मै हो गई मिट्टी काली सी ।।


तुम हवा मे उड़ते जाते थे 

तेज हवा के झोको से ।

मै देख रही थी पड़ी हुई 

मै तुमको न रोक सकी थी ।।


जब हरे भरे थे हम दोनो 

फल फूलो से लदे हुए थे ।

फूल झड़े फल गिरे 

हम हो गये खाली डाली से ।।


अस्तित्व बचाने के खातिर 

हम लड़ते रहे हर मौसम से 

न जाने किस मौसम की आह लगी 

मै गिरी टूट के सुखी डाली सी ।।


न जाने कितने पद चिन्हो से 

रौदी गई मै माटी मे ।

पानी बरसा धूप लगी 

मै हो गई काली मिट्टी सी ।।


उत्तम कुमार तिवारी  ‘उत्तम’ 

लखनऊ, उत्तर प्रदेश 


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