ग़ज़ल

अरुणिता
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चराग़ जिसने जलाया उसे तलाश करो

अंधेरा किसने मिटाया उसे तलाश करो



बहुत उदास है बस्ती का हर तरफ मंजर

धुवां ये किसने उठाया उसे तलाश करो



जो अपने आप को समझा था साहिबे आलम

उसी नें सबको रुलाया उसे तलाश करो



तुम अपने ओहदे का कुछ भी तो एहतराम करो

वो जिसने तुमको बनाया उसे तलाश करो



जहां-जहां है तेरी सल्तनत संभाल लो अब

हवा में जहर मिलाया उसे तलाश करो



ये कोई कौम है इंसान जिसे कहते हैं

इन्हीं में है वो साया उसे तलाश करो



बदल बदल के कोई कितना बदल जाएगा

बदलना जिस ने सिखाया उसे तलाश करो



आलोक रंजन इंदौरवी
 इन्दौर, मध्यप्रदेश

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