याद हैं वो दिन

अरुणिता
By -
0

वह भी क्या दिन थे
जब मेरी कलम रूकती ही ना थी
बस तुझे ही लिखती रहती थी
मेरे हर लफ्ज में तुम ही तुम तो थे
कलम की स्याही के हकदार
सिर्फ तुम ही तुम तो थे
फिर ना जाने क्या हुआ
तुम मुझसे खफा हो गए
मेरे साथ रहते हुए भी
मुझसे जुदा हो गए
लिखती तो अब भी हूँ
पर ना इश्क, तेरा ना बेवफाई तेरी
पता नहीं क्या लिख देती हूँ
कुछ भी लिखूं, तुम ना आओगे
ना पढ़ने ,ना समझने
पर सुनो आज भी तुम ही तुम हो
मेरी डायरी के हर पन्ने पर
मेरे दिल की हर धड़कन की तरह
तुम ही रहोगे सदा मेरे
क्योंकि सिर्फ तुम ही तुम तो थे।



प्रभजोत कौर 'जोत'

मोहाली, पंजाब 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Out
Ok, Go it!